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पंडित नाहर और राजन साजन मिश्र के गायन ने तानसेन समारोह में भरे रंग

 तानसेन समारोह की चौथे दिन की सभा की आखिरी सभा में स्वर साज़ का उदात्त रूप सुनने को मिला। प्रख्यात सितार वादक एवं राजा मानसिंह संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलपति प्रो पंडित साहित्य कुमार नाहर ने जहाँ अपने सितार वादन से जहां रसिकों को आनंदलोक की सैर कराई वहीं बनारस घराने के जाने माने ख़याल गायक पंडित राजन मिश्र एवं पंडित साजन मिश्र ने अपनी अनूठी गायकी से सभा को उत्कृष्टता के चरम पर पहुंचाया।

सभा के पहले कलाकार थे यूएस के पियानिस्ट स्टीफन काय ने पियानो वादन कर एक अलग ही रंगत घोल दी। उन्होंने पियानो पर यूएस की कई क्लासिकल और पारम्परिक धुनें बजाईं। स्टीफन 2006 से भारत में रह रहे हैं। उनका अपना खुद का बैंड तो है ही इसके साथ ही बे फ्यूजन भी करते हैं। स्टीफन 1020 की मूक फिल्मों में संगीत देने का काम भी कर रहे हैं।

सभा की अगली प्रस्तुति में पुणे से आई किंतु ग्वालियर की ख़याल गायिका साधना मोहिते देशमुख का सुमधुर ख़याल गायन हुआ। साधनाजी ने राग पूरिया से गायन की शुरुआत की। सुंदर आलापचारी से शुरू करके आपने इस राग में दो बन्दिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे-' तन मन बारूं' जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे - 'आना वे मिल जाना वे' दोनों ही बंदिशों को साधनाजी ने बड़े सलीके से गाया। राग की बढ़त में भी उन्होंने खासी सूझबूझ दिखाई। फिर तानों की प्रस्तुति भी श्रवणीय थी। आकार की तानें सरगम और बोल ताने सभी में उन्होंने खूब कमाल दिखाया।राग देश से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने तीनताल में बंदिश- 'घन गगन घन।' को भी सिद्दत से पेश की। गायन का समापन आपने खमाज में टप्पे से किया। आपके साथ गायन में अश्विनी मोरगोड़े नासेरी ने साथ दिया। जबकि तबले पर मनोज पाटीदार औऱ हारमोनियम पर संगत की।

सभा के तीसरे कलाकार के रूप में मंच पर आये प्रख्यात सितार वादक प्रो पंडित साहित्य कुमार नाहर ने अपने सितार वादन से रसिकों को सिक्त कर दिया। ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में बतौर कुलपति पदस्थ प्रो नाहर देश के कई संगीत समारोहों में शिरकत कर चुके हैं। अपनी पदस्थापना के ठीक सौंवे दिन उनकी प्रस्तुति भी एक संयोग ही है। बहरहाल, उन्होंने अपने वादन की प्रस्तुति राग वाचस्पति से की। राग वाचस्पति कर्नाटक शैली का राग है। इस राग को बजाने में प्रो नाहर ने कई रंग भरे। आलाप और जोड़ आलाप से शुरू करके आपने इस राग में दो गतें बजाईं। दोनों ही गतों को बजाने में आपने अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। रागदारी की बारीकियों के साथ आपने विविध लयकरियाँ बजाने में जो कमाल दिखाया वह काबिले तारीफ कहा जाएगा। द्रुत गत बजाने में भी आपने खूब रंग भरे। आपका वादन गायकी और तंत्रकारी अंग के संतुलन को लेकर चलता है। आपने अपने वादन का समापन दादरा में निबदश मिश्र खमाज की एक पारंपरिक धुन से किया। आपके साथ तबले पर बनारस घराने के युवा तबला वादक अभिषेक मिश्र ने मनोहारी संगत का प्रदर्शन किया।

सभा का समापन देश के विख्यात संगीत साधक एवं पद्मविभूषण पंडित राजन साजन मिश्र के सुमधुर और ओजपूर्ण ख़याल गायन से हुआ। संगीत को पूजा बताने और उस पूजा में संगीत रसिकों को शामिल करने का आग्रह करते हुए उन्होंने राग पूरिया के सुर छेड़ दिए। सुंदर आलापचारी से शुरू करके आपने इस राग में दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे- 'पिया गुणवंत' जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे-'मैं तो कर आई पिया संग रंगरलियां।' दोनों बंदिशों को आपने बड़े ही रंजक अंदाज़ में पेश किया। अति द्रुत एक ताल की बंदिश- पिया संग लागी लगन को आपने बड़े ही ओजपूर्ण अंदाज़ में गाया। राग सोहनी से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अद्धा तीन ताल में बंदिश पेश की- आई ऋतु नवेली बसंत' मध्य और तार सप्तक में गाई इस बंदिश का ऐसा असर तारी हुआ कि रसिक मुग्ध हो गए। मानो शिशिर में बसंत का आगमन हुआ हो। इसी राग में आपने द्रुत तीन ताल में तराना पेश किया और गायन समापन भैरवी में सूरदास के भजन - बिनती करत' से किया। आपके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खां ने मिठास भरी संगत की जबकि हारमोनियम पर सुमित मिश्र ने संगत की।


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