Type Here to Get Search Results !

इंदौर नगर पालिक निगम ने सफाई में लगाया चौका (सफलता की कहानी)

देश-विदेश से प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं अधिकारी और जनप्रतिनिधि गॉड मेड द कंट्री, मैन मेड द टाउन


भारत सरकार के आहवान पर वर्ष 2014 से भारत स्वच्छता मिशन चल रहा है। पूरे देश में यह अभियान इस समय चरमोत्कर्ष पर है। पिछले पाँच साल से इस मिशन ने देश का कायाकल्प कर दिया। यह मिशन अभी भी जारी है। भारत सरकार ने ग्राम से शहर तक यह मिशन चलाया जा रहा है। भारत सरकार शहरी विकास मंत्रालय द्वारा पिछले चार वर्ष से देश के नगरों और ग्रामों में आपसी प्रतियोगिता आयोजित की है और निकायों को पुरस्कार भी किया जा रहा है, जिससे उन्हें प्रेरणा मिल सके। इंदौर नगर पालिका निगम द्वारा देश-विदेश तकनीक आयात कर इंदौर को लगातार चौथी बार देश में प्रथम स्थान हासिल किया। इस मिशन को सफल बनाने में महापौर, पाषदों और सफाई कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। इस मिशन इंदौर की जनता का भी सहयोग अभूतपूर्ण रहा। बिना जन सहयोग के कोई भी मिशन कभी सफल नहीं हो सकता।
इन्दौर नगर निगम ने कैसे लक्ष्य निर्धारित कर शहरवासियों की मदद से 2017 में पूरे भारत में नंबर एक का खिताब पाया। इन्दौर लगभग 30 लाख की जनसंख्या का शहर है एवं 175 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। वर्ष 2015 में इन्दौर वेस्ट मैनेजमेंट बहुत ही खराब स्थिति में था, जिसके लिये इन्दौर नगर निगम ने कचरा प्रबंधन नियम के अनुसार प्लानिंग कर शहर को डस्टबिन फ्री, डस्ट फ्री और लिटर फ्री करने का संकल्प लिया। इसके अतंर्गत शहर में घर-घर कचरा संग्रहण, परिवहन एवं निपटान व्यवस्था स्थापित की गई और शहर को खुले में शौचमुक्त (ओ.डी.एफ.) किया गया। लगन भी मजबूत थी, शहरवसियों का साथ रहा और नगर निगम ने कड़ी मेहनत की, फिर भला मंजिल कैसे न मिलती? स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 में इन्दौर देश भर के बड़े-बडे़ शहरों को पछाड़ कर पूरे भारत में नंबर 01 आया और तब से पूरे इन्दौर को स्वच्छता की आदत-सी हो गई है। वर्ष 2019 पूरे भारत इंदौर नगर पालिका निगम ने स्वच्छता में हैट्रिक लगाई और 2020 में पूरे भारत में इंदौर नगर ने चौथी बार प्रथम स्थान प्राप्त किया।
      इन्दौर नगर पालिक निगम, जो इतने बड़े शहर को नबर 01 के शिखर पर बनाये हुये हैं। नंबर वन आने के बाद तो शहर की जिम्मेदारियां और बढ़ गई हैं और उसे सम्भालने के लिये इन्दौर को और भी स्वच्छ ओर सुविधाजनक बनाने के लिये नये-नये आधुनिक तरीकों और मशीनों का प्रयोग हो रहा है। स्वच्छता को लेकर अनेक ऐसे काम किये जा रहे हैं, जो इन्दौर शहर को “विश्व में वेस्ट मेनेजमेंट” के लिये अलग पहचान दे रहा है।
डोर-टू-डोर वेस्ट कलेक्शन, ट्रासपोर्ट प्रोसेसिग  ऐण्ड डिस्पोजल
      इन्दौर शहर के सभी 85 वार्डो में 477 डोर-टू-डोर कचरा वाहनों द्वारा गीला व सूखा कचरा हरे और नीले कम्पार्टमेंट में संग्रहण किया जा रहा है। डोर-टू-डोर वाहनों में गीले व सूखा
कचरे के अलावा एक पृथक कम्पार्टमेंट की व्यवस्था भी की गई है, जिसमें घरेलू जैव चिकित्सीय अपशिष्ट डाला जाता है। जिन संकरी गलियों में ये कचरा वाहन नहीं पहुंच पाते हैं, वहां हाथ ठेलों द्वारा अलग-अलग गीला एवं सूखा कचरा इकट्ठा कर कचरा वाहनों में डाला जाता है। घरों से कचरा इकट्ठा कर रहे कचरा वाहन अपने निर्धारित “गारबेज ट्रांसफर स्टेशन” पर जाते है, जहां नीले और हरे रंग के 20 क्युबिक मीटर क्षमता के कैप्सूल कन्टेनर में गीला और सूखा कचरा अलग-अलग कॉम्पेक्ट कर डाला जाता है। एक कैप्सूल में लगभग 35 से 40 छोटी गाड़ियों का कचरा आ जाता है, जिसे जैव चिकित्सीय हुकलोडर के जरिये ट्रक के माध्यम से ट्रेंचिंग ग्राउण्ड पहुंचाया जाता है। वहीं घरैलू जैविक अपशिष्ट को एक अलग वाहन में ट्रांसफर कर साँवेर रोड स्थित जैव चिकित्सा अपशिष्ट निपटान संयंत्र पर भेजा जाता है, जहां इसे इन्सीनरेशन (प्रज्जवलन) की प्रकिया द्वारा जला कर बची हुई राख की हजार्ड्स वेस्ट मैनेजमेंट करने वाली कंपनी को दे दिया जाता है। घरों से एक बार व व्यावसयिक क्षेत्रों से दिन में 2 बार कचरा संग्रहण कार्य किया जाता है। व्यवसायिक क्षेत्रों में राहगीरों के उपयोग के लिये 03 हजार से अधिक ट्वीन लिटरबिन लगाये गये हैं, जिनका गीला एवं सूखा कचरा प्रतिदिन विशेष वाहन द्वारा इकट्ठा कर कचरा निपटान केन्द्र पर खाली किया जाता है। वहीं जिन व्यावसयिक प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन 10 किलोग्राम से अधिक वेस्ट जनरेट होता है, उनके लिये 47 डंपर एवं 13 कॅाम्पेक्टर की मदद से कचरा इकट्ठा कर सीधे ट्रेंचिंग ग्राउण्ड में पहुचाया जाता है। सभी कचरा संग्रहण वाहनों के साथ फीडबैक रजिस्टर भी रखे जाते हैं, जिनमें आम लोगों के कचरा संग्रहण के प्रति सुझाव एवं फीडबैक लिये जाते हैं।
      इस प्रकार शहर के सभी 85 वार्डों से शत-प्रतिशत सेग्रीगेटेड वेस्ट ट्रेचिंग ग्राउण्ड पहुंचता है, जिसे सुनिश्चित करने के लिये नगर निगम द्वारा सिस्टम बनाया गया, जिसमें ड्राइवर्स को ट्रेनिंग, उप स्वच्छता निरीक्षक द्वारा मानटिरिंग, एन.जी.ओ. की सहभागिता, सभी वाहनों में जी.पी.एस. ट्रैकिंग व वाहनों का रूट निर्धारण शामिल है।
      वाहनों की जी.पी.एस. मॉनटिरिंग व ओवर ऑल मेंटेनेंस के लिये इन्दौर नगर निगम ने “एक अत्याधुनिक आईएसओ सर्टिफाइड वर्कशॉप” बनाई है, जो कि पूरे देश में अपनी तरह की एक अनूठी वर्कशॉप है। ट्रेंचिंग ग्राउण्ड में पहुंचने के बाद कचरा वाहनों का वेब्रिज द्वारा वजन करवाकर गीले व सूखे कचरे को निर्धारित स्थानों पर ले जाकर खाली कराया जाता है। इसमें गीले कचरे को विन्ड्रो में रखा जाता है, ताकि इसकी नमी कम हो जाये, वही इससे रिसने वाले लीचेट के लिये ड्रेनेज लाइन एवं लिचेट कलेक्शन पिट की व्यवस्था भी की गई है। गीले कचरे में बायो-कल्चर को समय-समय पर मिक्स कर पलटाया जाता है। साथ ही दुर्गंध रोकने तथा कम्पोस्टिंग प्रक्रिया बढ़ाने वाले जीवाणु की वृध्दि के लिये उपयुक्त छिड़काव भी किया जाता है। 28 दिन बाद इस वेस्ट को वहीं स्थित 600 मैट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता वाले मैकेनिकल कम्पो‍स्टिंग प्लांट पर आगे की प्रकिया के लिये ट्रांसफर कर दिया जाता है, जहां इस कचरे से प्रतिदिन लगभग 40 मैट्रिक टन कम्पोस्ट बनाया जाता है, जिसकी गुणवत्ता की जांच प्लांट में स्थित लैब एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है। इस खाद को ’’इन्दौर सिटी कम्पोस्ट’’ ब्राण्ड के नाम से खुले में 2 रुपये प्रति किलो तथा बैग में 3 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है।यह खाद किसानों के द्वारा खरीदी जाती है, साथ ही वन विभाग, सामाजिक वानिकी, इंदौर विकास प्राधिकरण, नगर निगम के बगीचों एवं प्रायवेट नर्सरियों के उपयोग मे भी लाया जा रहा है।निगम द्वारा प्रतिदिन जैविक खाद बनाने एवं बेचने की जानकारी भारत सरकार के एम.एफ.एम.एस. पोर्टल पर अपलोड की जाती है।
      वहीं सूखे कचरे को मैटेरियल रिकवरी सेंटर में भेजा जाता है, जहां रैग पिकर्स द्वारा इसे सेग्रीगेट किया जाता है। सूखे कचरे में ई-वेस्ट, धातु, पेपर, कांच, फुटवेयर तथा चमड़े, गत्ते के उत्पादों को पुनः उपयोग लायक बनाने के लिये एन.जी.ओ. के माध्यम से कबाडि़यों के द्वारा अधिकृत रियासकल करने वाली कंम्पनियों को दे दिया जाता है। पोलीथिन व बचे हुये प्लास्टिक उत्पादों को प्लास्टिक रिकवरी सेंटर पर प्रोसेस कर रॉ-मटेरियल बनाया जाता है। साथ ही प्लास्टिक को विभिन्न प्रकिया से प्रोसेस कर डामर सड़कों के निर्माण में उपयोग किया जाता है तथा पाइप निर्माण करने वाली फैक्ट्री को दिया जाता है। शहर से निकलने वाले हेयर वेस्ट से एमिनो एसिड का निर्माण निगम द्वारा संयंत्र स्थापित कर किया जा रहा है। अब इस गीले कचरे से एलपीजी गैस और सीएनजी गैस भी बनाई जायेगी और व्यावसायिक उपयोग भी शुरु होगा। यह एक अनुकरणीय पहल है। देश-विदेश से अधिकारी और जनप्रतिनिधि कचरा प्रबंधन का गुर सीखने यहां पर आते रहते हैं। इस इसे कहते है- गॉड मेड द कंट्री, मैन मेड द टाउन अर्थात ईश्वर ने देशों को बनाया और मनुष्य ने शहरों को बनाया।


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.