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हिन्दी दिवस पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर में हिन्दी में सुनवाई कर हिन्दी में निर्णय पारित

हिन्दी दिवस के अवसर पर आज मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की खण्डपीठ इंदौर में अनेक मामलों में हिन्दी में सुनवाई कर हिन्दी में निर्णय पारित कर गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाया गया। उच्च न्यायालय की खण्डपीठ इंदौर के प्रशासनिक न्यायाधिपति श्री एस.सी. शर्मा एवं न्यायाधिपति श्री विरेन्दर सिंह और न्यायाधिपति श्री एस.के. अवस्थी ने अनेक मामलों में हिन्दी में निर्णय/आदेश पारित किये।
   प्रिंसिपल रजिस्ट्रार श्री अनिल वर्मा ने बताया कि प्रशासनिक न्यायाधिपति श्री एस.सी. शर्मा एवं न्यायाधिपति श्री विरेन्दर सिंह की युगलपीठ द्वारा दाण्डिक अपील क्रमांक-398/2010 (नारायण सिंह विरूद्ध .म.प्र.राज्य) में हिन्दी भाषा में निर्णय पारित किया गया। इसके अनुसार अपीलार्थी/अभियुक्त नारायण सिंह के संबंध में भारतीय दंड विधान की धारा 302 के अंतर्गत अधीनस्थ अपर सत्र न्यायाधीश आगर, जिला शाजापुर द्वारा पारित दोषसिद्धि एवं आजीवन कारावास एवं  500 रूपये के अर्थदंड के दंडादेश संबधी निर्णय की पुष्टि करते हुए, उसे यथावत कायम रखा गया है। आज इसके अलावा उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश की खंडपीठ इंदौर की एकलपीठ में न्यायाधिपति श्री विरेन्दर सिंह एवं न्यायाधिपति श्री एस.के. अवस्थी द्वारा भी अनेकों मामलों में हिन्दी में सुनवाई करते हुए निर्णय/आदेश पारित किये गये है। न्यायाधिपति श्री विरेन्दर सिंह ने आज उनकी न्यायालय के सभी 41 मामलों में हिन्दी में आदेश पारित किए है।
   आज 14 सितम्बर को "हिन्दी दिवस" के अवसर पर उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश की खण्डपीठ इंदौर ने हिन्दी में निर्णय पारित कर गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाया गया हैं।
   हमारे देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी है और स्वाधीनता उपरांत भारत में हिन्दी के प्रयोग में शासकीय और अशासकीय स्तर पर निरंतर वृद्धि हो रही है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार संघ की राज भाषा देवनागरी लिपि हिन्दी है, यद्यपि राज्यों को हिन्दी से भिन्न प्रादेशिक भाषा चुनने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
   जहां तक न्यायालय की भाषा का प्रश्न है। अधिकांश हिन्दीभाषी राज्यों में अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा हिन्दी है। परन्तु संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है और एक लम्बे अर्से से उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय सहित सभी न्यायालयों की भाषा हिन्दी किये जाने की मांग इस आधार पर की जा रही है कि अदालत में अपनी भाषा में बोलने का अधिकार होना चाहिए।


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