Type Here to Get Search Results !

भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की नहीं, शोध की आवश्यकता

ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद केवल राजनैतिक घटनाएं ही हुईं रेखांकित


भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद और भारतीय दर्शनशास्त्र अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रोफेसर के. रत्नम ने कहा कि ब्रिटिश काल में और स्वतंत्रता के बाद लेखक देश की सभ्यता, संस्कृति और गौरवशाली परम्पराओं का ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं कर सके। केवल कुछ राजनैतिक घटनाएं ही इतिहास की विषयवस्तु रहीं जबकि समग्र समाज का योगदान रेखांकित नहीं हुआ। श्री रत्नम ने यह बात संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा मंगलवार को आयोजित 'भारतीय इतिहास लेखन परंपरा - नवीन आयाम' विषय पर 5वीं ऑनलाइन व्याख्यानमाला के दौरान कही। श्री रत्नम ने कहा कि भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की नहीं बल्कि इसके शोध की आवश्यकता है।


इतिहासविद् प्रोफेसर रत्नम ने कहा कि वे इतिहास के पुनर्लेखन के पक्षधर नही हैं क्योंकि इस अवधि के इतिहास पर शोध कर बहुत से अनछुए पर अतिमहत्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाया जाना आवश्यक है। शोध-कार्य से उपलब्ध प्रचुर साक्ष्यों के विश्लेषण से सत्य को उजागर किया जा सकता है। शोध-कार्य को नवीन और सही दिशा दिये जाने की आवश्यकता है। यह शोध ही हमारे इतिहास में गौरवशाली संशोधन का आधार बन सकता है।


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.