संघर्ष की अनोखी मिसाल है मां बेटे
मनरेगा कार्य में थीसिस पूरा करने में व्यय होने वाली राषि दिखाई दी कोरोना संक्रमण काल से पहले जब गोलू घर आया तो फिर अब तक वापस नही जा सका। फिर गोलू क्या करता गांव में तो कोई काम नही। इसी बीच मप्र शासन ने आर्थिक गतिविधि प्रारम्भ करने के लिए मनरेगा योजना में प्रवासी मजदूरों और स्थानीय श्रमिको को काम देना प्रारंभ किया गया। शासन के इस निर्णय से अन्य मजदूर वर्ग कितना खुश हुआ ये तो कह नही सकते। लेकिन गोलू को एमएससी में थीसिस पूरा करने में व्यय होने वाली राशि दिखाई देने लगी। तुरंत उसने सचिव महेंद्र यादव को आवेदन कर दिया। फिर क्या था? गोलू और छोटा भाई अंकित ने इस अवसर को भुनाया और लगातार मजदूरी कर रहे है। दोनों के खाते में अब तक 2-2 हजार रुपए का भुगतान हो गया है। हालांकि उनके खाते में अभी 4 से 5 सप्ताह की मजदूरी राशि आना शेष है। गोलू बताता है कोई भी काम बड़ा या छोटा नही होता है। मैं मजदूरी कर पढ़ाई कर रहा हूं। एक दिन निश्चित रूप से बेहतर करूंगा। गोलू को इस बात की ज्यादा खुशी है कि इस राशि से वे स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर में थीसिस आसानी से बना लेंगे, वरना लॉकडाउन में घर पर रह कर अक्सर यही चिंता थी कि आगे क्या करेंगे। उनकी यह चिंता मनरेगा ने दूर कर दी। वास्तव में मां और दोनों बेटों की मेहनत और लगन एक दिन जरूर रंग लाएगी। जब गोलू अपना सपना पूरा करेंगे। |