श्रमिकों, रोजगार प्रदाताओं जैसे उद्योगपति, कारखाना या दुकान का मालिक, श्रम संगठनों और सरकार के बीच संबंधों का निर्धारण श्रम कानूनों के माध्यम से होता है। यह कानून बताते हैं कि श्रमिकों का न्यूनतम वेतन कितना होगा, उनके अधिकतम कितने घंटे काम करना होगा, कार्यस्थल पर उन्हें क्या सुविधाऍं दी जाऍंगीं आदि। वहीं रोजगार प्रदाताओं के हितों की रक्षा के लिए श्रमिकों के साथ विवादों के निराकरण के नियम व प्रक्रिया भी इन्हीं कानूनों में निर्धारित की गई है। इन कानूनों में फेरबदल करना तलबार की धार पर चलने जैसा है। यदि श्रम संगठनों की सारी मॉंगें मान ली जाऍं तो उद्योगों का चलना मुश्किल हो जाएगा वहीं रोजगार प्रदाताओं की सारी मॉंगें मानने पर श्रमिकों के शोषण का रास्ता खुल जाएगा। श्रम कानूनों का दायित्व है कि वे कामगारों को उद्योगपतियों के शोषण से बचाऍं वहीं उद्योगों को श्रमिकों के अवैधानिक दवाबों से संरक्षण प्रदान करें।
कोराना संकट से वैश्विक अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। औद्योगिक उत्पादन ठप्प हो गया है। श्रमिकों का बड़ी संख्या में उद्योगों से पलायन हुआ है। कई देशों से बड़ी कंपनियॉं व उद्योग ऐसे नए ठिकाने खोज रहे हैं जहॉं उन्हें सस्ता और कुशल श्रम, प्राकृतिक संसाधन, अच्छी कानून व्यवस्था और उद्योग हितैषी कानून विधान मौजूद हो। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के मकसद से केंद्र सरकार ने व्यापक श्रम सुधारों का अभियान शुरू कर दिया है। निवेश आकर्षित करने के लिए जटिल कानूनों और लालफीताशाही को हटाना आवश्यक हो गया था। इसी क्रम में आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने के घोषित लक्ष्य के तहत मध्यप्रदेश ने भी श्रम सुधारों की घोषणा कर दी।
मध्यप्रदेश पूर्व में ही 13 केंद्रीय एवं 4 राज्य कानूनों में 32 संशोधन कर चुका है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए 30 सेवाओं को मप्र लोकसेवा गारंटी अधिनियम में लाया जा चुका है। मध्यप्रदेश में निश्चित समय के लिए रोजगार देने का प्रावधान, रिटर्न फाइल करने के लिए स्वप्रमाणन का प्रावधान, सिंगल विंडो क्लीयरेंस का प्रावधान किया गया है । औद्योगिक विवाद अधिनियम की कुछ धाराओं और ठेका श्रम अधिनियम, मोटर ट्रांसपोर्ट कर्मकार अधिनियम और अंतर्राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम की सभी धाराओं के अंतर्गत उल्लंघन पर कम्पाउंडिंग के प्रावधान किये गये हैं।
ऐसे कारखानों को जो बिना विद्युत शक्ति से चलित हैं उन्हें पूर्णत: और जो विद्युत शक्ति से चलित हैं उनमें यदि कामगारों की संख्या 50 तक है तो उन्हें कारखाना अधिनियम के प्रावधानों से छूट देने का प्रस्ताव केंद्र शासन को भेजा जा चुका है। श्रमिकों के ठेकेदार पर ठेका श्रम अधिनियम तभी लागू होगा जब वह 50 से अधिक श्रमिक नियोजित करेगा । पहले यह श्रमिक संख्या 20 थी। यह प्रस्ताव भी भारत सरकार को भेजा जा चुका है। नये प्रस्तावों में उद्योगों में तृतीय पक्ष के द्वारा निरीक्षण की व्यवस्था की गई है। छोटे संस्थानों को सरकारी हस्तक्षेप से बचाने हेतु 50 से कम श्रमिक नियोजित करनेवाले संस्थानों में श्रम आयुक्त की पूर्व अनुमति के बगैर निरीक्षण प्रतिबंधित कर दिया गया है। सभी श्रम अधिनियमों में पंजीयन लायसेंस एवं रिटर्न की ऑनलाइन व्यवस्था की गई है। अनेक श्रम अधिनियमों के अंतर्गत पंजीयन और अनुज्ञप्ति अब 1 दिन में प्रदान करने की गारंटी दी गई है। लाइसेंस का नवीनीकरण की अवधि अब एक वर्ष के स्थान पर 10 वर्ष कर दी गई है।
कारखानों में मजदूरों के कार्य की दैनिक अवधि 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दी गई है। एक सप्ताह में अधिकतम 72 घंटे कार्य करने की अनुमति होगी। अतिरिक्त 4 घंटे का कार्य, श्रमिक की इच्छा से उसे सामान्य दर से दोगुना ओवरटाइम देकर ही, लिया जा सकता है। अब दुकानें व वाणिज्यक स्थापनाऍं प्रात: 6 बजे से रात्रि 12 बजे तक खुली रखी जा सकेंगीं। नये स्थापित होने वाले कारखानों को प्रासंगिक श्रम कानूनों से 1 हजार दिवस तक छूट दी गई है। कारखाना अधिनियम में अनेक प्रावधानों को 3 माह के लिए शिथिल किया गया है। इससे उनमें सरकारी हस्तक्षेप घटेगा। कार्य के घंटों में छूट से जहॉं उत्पादन बढ़ेगा वहीं ओवरटाइम से श्रमिकों की आय बढ़ेगी ।
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के कुछ प्रावधानों के शिथिलीकरण से रोजगार प्रदाता को श्रमिकों का नियोजन करने, संतोषजनक सेवा न देने पर उनका निष्कासन करने में सरलता होगी । इसमें श्रम विभाग व न्यायपालिका का हस्तक्षेतप नहीं हो सकेगा। अब मप्र औद्योगिक नियोजन अधिनियम 1961 तभी लागू होगा जब कामगारों की संख्या 100 या अधिक होगी। पहले यह संख्या 50 थी। इससे लघु व मध्यम उद्योगों को राहत मिलेगी । नवीन स्थापित उद्योगों को श्रम कल्याण मंडल में अंशदान देने से छूट दी गई है। कपड़ा लोहा स्टील शक्कर विद्युत वस्तुऍं आदि को मप्र औद्योगिक संबंध अधिनियम के प्रावधानों से छूट दे दी गई है।
मध्यप्रदेश के श्रम सुधारों की विशेषता इनका संतुलित होना है। जहॉं एक ओर यह औद्योगिक निवेश के लिए वातावरण बनाता है वहीं दूसरी ओर श्रमिकों के हितों से कोई समझौता नहीं किया गया है। विभिन्न अधिनियमों में श्रमिकों को दिये गये लाभ यथावत संरक्षित रखे गये हैं। महिला श्रमिकों को समान कार्य के लिए समान वेतन तथा 26 सप्ताह का प्रसूति अवकाश वेतन सहित मिलेगा। बाल श्रमिकों का नियोजन प्रतिबंधित रहेगा । श्रमिकों को न्यूनतम वेतन व मँहगाई भत्ते व साप्ताहिक अवकाश का अधिकार भी यथावत् रहेगा। श्रमिकों के स्वास्थ्य व सुरक्षा संबंधी प्रावधानों से कोई समझौता नहीं किया गया है। कार्य के दौरान दुर्घटना की स्थिति में श्रमिकों को क्षतिपूर्ति संबंधी प्रावधान लागू रहेंगे। श्रमिकों की बंदी व छँटनी में पूर्व से निर्धारित प्रक्रिया अपनाना आवश्यक होगा जिसमें छँटनी की स्थिति में 3 माह की सूचना या वेतन देना आवश्यक होगा। श्रमिकों की ओर से उनके श्रम संगठन नियोजकों से चर्चा हेतु सक्षम रहेंगे। कर्मचारी राज्य बीमा अस्पतालों का लाभ भी श्रमिकों को यथावत् मिलेगा। इसी प्रकार संबल योजना व विभिन्न प्रकार के कर्मकार कल्याण मंडलों के देय लाभ भी श्रमिकों को पात्रता अनुसार प्राप्त होते रहेंगे।
प्रदेश सरकार के इन संतुलित प्रयासों से नया निवेश आकर्षित होगा और औद्योगिक गतिविधियॉं प्रोत्साहित होंगीं। इन उपायों से ही मौजूदा कामगारों के रोजगार की रक्षा होगी और नये रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।