विश्व गौरैया दिवस पर गौरैया को दाना-पानी देना, दादी की है दिनचर्या का हिस्सा
Mr. Suresh Prajapati (kolar ki dhadkan )--कोलार की धड़कन -Saturday, March 21, 20200
गोरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। उसकी घटती आबादी के पीछे मानव और विज्ञान का विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है। जंगलों का सफाया हो रहा है इसका सीधा असर इन पर दिख रहा है। हालात यहां तक पहुंच गए की जंगली जानवर, मानव बस्तियों तक पहुंचने लगे हैं। कच्चे की जगह पक्के मकान बना दिए, जिसमें गौरैया को घोंसला बनाने की जगह नहीं मिल रही है। गोरैया अपना घोंसला आसान जगहों पर ही बनाती है इस कारण से कई बार घोसलो में रखे अंडे किसी न किसी कारणवश क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। हमें अब गौरैया आसानी से दिखाई नहीं देती है जोकि पहले हमारे घर आंगन में फुदक-फुदक कर आ जाती थी और घर के सभी लोग कुछ ना कुछ दाना पानी उन्हें देते थे। विश्व गौरैया दिवस पर शुक्रवार को ऐसा ही एक दृश्य आशाग्राम पहाड़ी के समीप बने मकानों में देखने को मिला, जहां दादी मां श्रीमती मधु दुबे पक्षियों के जल पात्र में पानी भरते हुए दिखाई दी। जब उनसे पूछा गया की यह जल पात्र कब लगाए हैं तो उन्होंने सहज ही जवाब दिया यह मेरे प्रतिदिन का हिस्सा है। प्रातः पक्षियों के लिए दाना डालना और जल पात्र भरना इस कार्य के लिए किसी मौसम एवं किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं होती। कहने को सरल व सहज संदेश दादी मां ने यूं ही दे दिया कि हमें जैव विविधता के लिए प्रतिदिन कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे कि गौरैया सहित अन्य पक्षी भी हमारी प्रकृति का हिस्सा सदैव बने रहेंगे।