आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में महिला सशक्तिकरण का जीवन्त उदाहरण ग्राम ग्वारा में देखने को मिला है। इस गाँव में आजीविका मिशन से महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ही नहीं हुई हैं बल्कि उनकी सोच में भी ताकत आई है। इसी का परिणाम है कि आज आदिवासी बाहुल्य ग्राम ग्वारा पूरी तरह नशामुक्त हो गया है। यहां शराब बनाना और पीना, दोनों ही कृत्य अपराध की श्रेणी में शामिल हो गये हैं।
ग्राम ग्वारा में कुछ समय पहले तक महिलाओं को घर की चार दीवारी में कैद रखा जाता था। समाज और गाँव के विकास में उनकी कोई भागीदारी नहीं हुआ करती थी। गाँव के 90 प्रतिशत से अधिक पुरूष शराब पीना अपना जन्मसिद्ध अधिकारी समझते थे।
आजीविका मिशन इस गाँव के लिये वरदान सिद्ध हुआ। किरण यादव, आशा मरावी और जानकी मार्को जैसी ग्रामीण महिलाओं ने गाँव के 132 परिवारों की महिलाओं को संगठित कर 1100 स्व-सहायता समूह बनाए। समूहों के माध्यम से गाँव में आर्थिक गतिविधियाँ शुरू कर महिलाएँ आर्थिक रूप से सशक्त हुई।
बात 26 जनवरी 2019 की है, जब ये महिलाएँ गाँव की ग्राम सभा में बिना बुलाए शामिल हुईं। पुरूषों से माईक छीनकर गाँव में नशाबंदी लागू करने के बारे में खुलकर अपनी बातें बताई। गाँव के अधिकांश लोगों को उनकी बातें अच्छी लगी लेकिन बुजुर्गों ने इसे गुस्ताखी माना, इसके बावजूद महिलाएँ झुकी नहीं।
ग्राम सभा में नशामुक्त ग्राम का संकल्प पारित किया गया। गाँव में जागरूकता रैली निकाली गई। नशे के आदी पुरूषों को सार्वजनिक रूप से समझाया गया। महिलाओं की इच्छा शक्ति का ही परिणाम है कि आज ग्राम ग्वारा पूरी तरह नशामुक्त ग्राम बन गया है। अब यहां शराब पीने वाले व्यक्ति पर 10 हजार रूपये तक जुर्माना किया जाता है। जुमार्ने से प्राप्त राशि का उपयोग ग्राम के विकास में किया जा रहा है। इतनी बड़ी जुर्माना राशि के कारण गाँव के पुरूषों ने शराब से तौबा कर ली है।