शीतलाष्टमी जो भी भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी तरह के रोग और मुक्ति मिलती है.
शीतलाष्टमी (Sheetala Ashtami Date): शीतलाष्टमी इस बार 16 मार्च को मनाई जाएगी. शीतलाष्टमी को 'बसौड़ा' भी कहा जाता है. इस दिन मां शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. यह साल यह व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है. चूंकि यह व्रत ,मां शीतला को समर्पित माना जाता है. इसलिए इस व्रत में पूरे विधि विधान के साथ मां की पूजा अर्चना होती है. इस व्रत की तैयारियां एक दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं. लोग व्रत पर मां शीतला को बासी खाने का भोग लगाने के लिए एक रात पहले ही पूरी साफ सफाई से खाना बनाकर रख लेते हैं. व्रत वाले दिन यानी कि शीतलाष्टमी को सुबह ही नित्यकर्म और स्नान के बाद मां की पूजा के दौरान उन्हें इस बासी खाने का भोग लगाया जाता है. इसके बाद यह खाना ही प्रसाद के तौर पर घर के अन्य सदस्यों को दिया जाता है. इस दिन घर में खाना बनाने या किसी अन्य काम के लिए भी चूल्हा नहीं जलाया जाता है.
शीतलाष्टमी का शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी के दिन पूजा करने का शुभ समय सुबह 6:46 बजे से लेकर शाम 06:48 बजे तक है.
रोग और कष्टों से मुक्ति देती हैं मां शीतला
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, जो भी भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी तरह के रोग और मुक्ति मिलती है. यह भी माना जाता है कि मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है और चेचक जैसे संक्रामक रोग में भी मां भक्तों की रक्षा करती हैं.
गधे की सवारी करती हैं मां शीतला
शीतला माता गधे की सवारी करती हैं. उन्होंने अपने एक हाथ में कलश पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में झाडू है. ऐसा माना जात है कि इस कलश में लगभग 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं.
मां शीतला की पूजा विधि
शीतलाष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद मां शीतला की पूजा अर्चना करें.
इसके बाद उन्हें पिछली रात के समय बने हुए बासी खाने का भोग लगाएं. इस खाने को बसौड़ा भी कहा जाता है. मां की आराधना के दौरान चांदी के चौकोर टुकड़े पर मां शीतला के उकेरे हुए चित्र को अर्पित करना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें हाथ से बनाई हुई खीर भी अर्पित कर सकते हैं. शीतलाष्टमी के अगले दिन इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि भक्त खुद बासी खाने का सेवन न करें. ऐसा करने से वो बीमार पड़ सकते हैं.