गांव की महिलाओं ने लिखी चप्पल निर्माण के जरिए आत्मनिर्भरता की नई इबारत
बदलते दौर में ग्रामीण महिलाएं भी घर गृहस्थी के दायरे से निकल कर रोजगार क्षेत्र में जगह बना रही हैं। महिलाएं खेतों में काम करने से लेकर मकान बनाने तक में हमेशा बराबरी से सब काम करती हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति हो गई है दतिया जिले के बसई क्षेत्र में साकली गांव में महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से चलाई जा रही चप्पल निर्माण ईकाई में लगी गांव की महिलाओं की। ये महिलाएं भी हमेशा कोई घरेलू काम धंधा करना चाहती थीं, पर उन्हें यह मौका तब मिला, जब राज्य सरकार के मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के मैदानी अमले द्वारा उनके स्वसहायता समूह बनाकर उन्हें घरेलू उद्योग शुरू करने को प्रेरित किया गया।
इससे प्रेरित होकर समूह की महिलाओं ने चप्पल निर्माण व्यवसाय में उतरने की ठान ली। इसके लिए उन्होंने ग्राम संगठन से दो लाख रूपये का ऋण लेकर चप्पल निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। आज तीन स्वसहायता समूहों की महिलाएं चप्पल निर्माण का काम करती हैं। इनके हाथों की बनीं चप्पल आज बसई क्षेत्र समेत पिछोर, झांसी जिले के बबीना, तालबेहट एवं ललितपुर जिले तक के बाजारों में बिकती हैं।
शुरू-शुरू में जब ये ग्रामीण महिलाएं चप्पल निर्माण उद्योग में उतरी थीं, तो लोग उन्हें ताज्जुब से देखते थे कि आखिर ये महिलाएं क्या वास्तव में चप्पल बना लेंगी, पर उन्होंने इस बात को झुठला दिया। सारे पुरूषों के बीच उन्होने अपनी दक्षता दिखाई। उन्हें लगता था कि अगर वे मेहनत करेंगी, तो जरूर सफल होंगी। इसी सिलसिले में उन्होंने खूब मेहनत की और आज उनकी बनाई चप्पलें लोगों के बीच बिक रहीं हैं। जिसका सपना उन्होंने देखा और उसे सफल कर पाईं। आज इनकी कमाई से इनका घर अच्छी तरह चल रहा है।
मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन ऐसी ग्रामीण महिला उद्यमियों को आगे लाने के लिए काफी कोशिश कर रहा है। उन्हें मंच प्रदान करता है, उन्हें प्रशिक्षण दिलवाता है और वित्तीय मदद दिलवाता है, ताकि वे आगे आएं और अपनी इच्छाओं को आजीविका के रूप में मूर्तरूप दे सकें। इन हस्तशिल्पियों के बारे में मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक श्रीमती संतमती खलको का कहना है,‘‘ इस धंधे में एक हस्तशिल्पी महीने में अच्छी खासी कमाई कर लेता है।‘‘ समूह की अध्यक्ष श्रीमती उमा भारती कहती हैं कि पहले समूहों की महिलाएं मजदूरी करती थीं और उन्हें रोजाना काम नहीं मिल पाता था। उन्हें अब दूसरों की मजदूरी से निजात मिल गई और आज उन्हें रोजाना काम मिल रहा है।